कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन करें, इस समय फसलों का विशेष ध्यान कैसे रखें, जानिए
गर्मी के साथ इस समय देश में प्री मानसून वर्षा होने लगी है ऐसे समय में कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन में कैसे करें, यह जानिए
कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन के विषय में आज चर्चा की जाएगी। किसान साथियों मौसम का प्रभाव सभी फसलों पर पड़ता है, मौसम के चलते कीट एवं रोग होते हैं जो फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, समय रहते इनका निदान नहीं किया जाता है तो यह फसल चौपट कर देते हैं। फसलों की सुरक्षा के लिए एवं रोग प्रबंधन के लिए समय-समय पर कृषि विशेषज्ञ वैज्ञानिक सलाह देते रहते हैं इस समय भी कृषि वैज्ञानिकों ने कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन के लिए सलाह जारी की है। इस लेख में कद्दू वर्गीय फसलों में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनके प्रबंधन पर बतलाया गया है।
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कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन
लाल कद्दू भृंग – इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। वयस्क पौधों के पत्ते में टेढ़े-मेढ़े छेद कर देते हैं। जबकि शिशु पौधों की जड़ों, भूमिगत तने एवं भूमि से सटे फलो तथा पत्तों को हानि पहुंचाते हैं
प्रबंधन – फसल खत्म होने पर बैलों को खेत से हटा कर नष्ट कर दें। तथा फसल की अगेती बुवाई से कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके प्रबंधन हेतु नीम तेल 5 मिली./लीटर पानी या डेल्टामेथ्रीन 250 मिली प्रति एकड़ की दर से 150-200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। पीला चिपचिपा प्रपंच के माध्यम से भी इसका प्रबंधन कर सकते हैं।
फल मक्खी – इस कीट की मक्खी फलों में अंडे देती है तथा शिशु अंडे से निकलने के तुरंत बाद फल के गूदे के भीतर ही भीतर खाकर सुरंग बना देते हैं।
प्रबंधन – ग्रसित फलो को एकत्रित करके नष्ट कर दें तथा फल मक्खियों को आकर्षित करने के लिए मीठे जहर जो गुड़ 25 ग्राम प्रति लीटर पानी में खराब हुई सब्जियों के साथ में मिलाकर किसी मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में 20-25 जगह पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रखने पर फल मक्खी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसी के साथ-साथ फसलों की पुष्पन एवं फलन के समय फैरोमौन ट्रैप 12-15 प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से नियंत्रित किया जा सकता है।
सफेद मक्खी – इस कीट के शिशु व वयस्कों के रस चूसने के पत्ते पीले पड़ जाते हैं इनके मधुबिंदु एवं काली फफूंद आने से पौधों की भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए वर्टिसिलियम लैकेनी 3 मिली/लि पानी में या इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एस.एल.) 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी में या स्पिनोसेड (45 एस.सी.) 1 मिली प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
चेंपा- चेंपा लगभग सभी कद्दू वर्गीय फसलों में नुकसान पहुंचाते हैं। यह फसलों के कोमल भावों से रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं।
रोकथाम – इसके रोकथाम के लिए वर्टिसिलियम लैकेनी 3 मिली/लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 1 मिली.लीटर प्रति 3 लीटर पानी में या स्तनों सेट (45 एससी) 1 मिली प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मृदु रोमिल आसिता– इस बीमारी से पत्तियों के ऊपरी भाग पर पीले धब्बे तथा निचले भाग पर बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
रोकथाम इसके नियंत्रण हेतु क्लोरोथेलेनिल+मैनकोज़ेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकतानुसार 15 दिवस के अंतराल में छिड़काव करें।
चूर्णिल असिता – इस बीमारी से ग्रस्त पौधों पर सफेद चूर्णिल नील धब्बे दिखाई देते हैं, तथा अधिक प्रकोप की स्थिति में पत्तियां गिर जाती है और पौधा मुरझा जाता है।
रोकथाम – रोग ग्रस्त पत्तियों को काटकर पौधों से अलग कर दें इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर एजोक्सीस्ट्रॉबिन+डाईफेनोकोनाजोल 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
मोजेक रोग – यह एक विषाणु जनित रोग है जो सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है इस रोग से प्रभावित पत्तियों की लंबाई व चौड़ाई कम रह जाती है तथा फलों का रंग व आकर भी प्रभावित होता है।
कद्दू वर्गीय फसलों में रोग प्रबंधन – रोग रोधी किस्म का चुनाव करें। पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देते ही रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबा कर नष्ट कर दे। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 1 मिलीलीटर प्रति 03 लीटर पानी में या स्पिनोसेड (45 एससी) 1 मिली प्रति 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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