खेती-किसानी

सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए अभी से खेत की तैयारी कैसे करें? कृषि विशेषज्ञों से यह जानिए

देश का आधा सोयाबीन अकेला मध्यप्रदेश पैदा करता है। मध्य प्रदेश में सोयाबीन को पीला सोना कहा जाता है। सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए रबी फसलों की कटाई के बाद से ही तैयारियां शुरू कर देना चाहिए।

देश का 50 प्रतिशत सोयाबीन उत्पादन मध्यप्रदेश में होता है। वर्तमान में देश में 120 लाख हेक्टेयर में साेयाबीन की खेती हो रही है। एमपी में 58 लाख हेक्टेयर एरिया में ये लगाई जा रही है। सोयाबीन की खेती मालवा में अधिक सफल है। सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए खेत की तैयारी कैसे करें, यह विशेषज्ञों से जानिए।

सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए गर्मी की गहरी जुताई जरूरी

रबी की फसल खाली होने पर खेत की गहरी जुताई करें। बहुत सारे कीट व बीमारी मिट्‌टी से पैदा होती है। मिट्‌टी उलटेगी, तो कीट व बीमारियों की तीव्रता कम हो जाएगी। खरीफ की फसल होने के चलते सोयाबीन में सबसे अधिक कीट व बीमारी लगती है। किसान समय पर प्रबंधन कर लें, तो कीट व बीमारियों से फसल को बचा लेंगे।

सोयाबीन का बीज प्रबंधन अच्छा हो

सोयाबीन की खेती के दौरान अक्सर यह देखने में आता है कि बीज सही नहीं होने के कारण पैदावार अच्छी नहीं हो पाती है इसलिए किसान साथी बीज की व्यवस्था अभी से सुनिश्चित कर लें, क्योंकि एन मौके पर अच्छा उत्तम क्वालिटी का बीज नहीं मिल पाता है।

सोयाबीन की अच्छी पैदावार देने वाले 18 किस्मों का विकास जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने अब तक किया है। 10 किस्में देश के 74 प्रतिशत क्षेत्रों में बोई जा रही हैं। ब्रीडर बीज के तौर पर देशभर में 14 हजार क्विंटल बीज की मांग है। इसमें 9 हजार क्विंटल बीज की मांग सिर्फ जवाहर सोयाबीन की है।

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खाद व बीज की यह मात्रा लगती है

बुआई के समय 20 से 25 किलो नाइट्रोजन, 60 से 80 किलो फाॅस्फोरस, 20 से 25 किलो पोटाश एक ही बार में बेसल डोज के तौर पर खेत में मिला दें। 20 जून से पांच जुलाई तक बुआई कर दें। प्रति हेक्टेयर 80 किलो बीज लगता है। उत्पादन 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

जवाहर किस्मों का करें प्रयोग

सोयाबीन किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के आधार पर करनी चाहिए। हल्की जमीन है, तो वहां शीघ्र पकने वाली किस्मों का चुनाव करें। किसान भाई 9560 के अलावा जेएनकेवी द्वारा विकसित 2069, 2034, 2098 और वर्तमान में विकसित की गई जवाहर 20-116 का प्रयोग करें। इससे अधिक उपज मिलेगी। इसमें बीमारी भी नहीं लगती है।

मृदा और विषाणु जनित रोग लगते हैं

सोयाबीन में मृदा जनित और विषाणु जनित बीमारी अधिक लगती है। सोयाबीन में पीला विषाणु रोग लगता है। यह सफेद मक्खी से फैलता है और पूरे खेत की फसल पीली होकर सूख जाती है। पुरानी जातियों में इसका प्रकोप अधिक देखा जा रहा है। नई चारों जातियों में इसकी तीव्रता कम देखने को मिली है। एक-दो पौधे दिखें, तो नष्ट कर दें। सफेद मक्खियों को कंट्रोल करने के लिए समय पर दवाओं का छिड़काव करें।

जड़ सड़न शुरू हुआ तो फसल बचानी मुश्किल

सोयाबीन में चारकोल जड़ सड़न रोग भी लगता है। ये पौधों को सुखा देता है। एक बार खेत में रोग फैला तो बचाव मुश्किल है। ऐसे में खेत में फफूद नाशक दवाओं का पहले ही छिड़काव कर दें। सोयाबीन पर अलग-अलग चरण में हरा सेमालूपर, कंबल कीट, चक्रभंग, तम्बाकू इल्ली, अलसी इल्ली हमला करते हैं। किसान अनुशंसित दवाओं का उपयोग करें।

नई किस्म विकसित करने में जुटा है कृषि विवि

सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए जेएनकेवी के कृषि साइंटिस्ट सोयाबीन की नई किस्में विकसित करने में जुटे हैं। अभी एक किस्म पर प्रयोग चल रहा है यह 85 दिन में पक जाएगी। इसका उत्पादन 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा।

यह बहुरोग रोधी होगा। देश के नौ राज्यों एमपी, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, नार्थ ईस्ट के राज्यों में इसका परीक्षण चल रहा है। अभी तक के परिणाम बेहतर हैं। यह बीज अभी प्रयोग में है किसानों के लिए अभी उपलब्ध नहीं हो पाएगा।

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राधेश्याम मालवीय

मैं राधेश्याम मालवीय Choupal Samachar हिंदी ब्लॉग का Founder हूँ, मैं पत्रकार के साथ एक सफल किसान हूँ, मैं Agriculture से जुड़े विषय में ज्ञान और रुचि रखता हूँ। अगर आपको खेती किसानी से जुड़ी जानकारी चाहिए, तो आप यहां बेझिझक पुछ सकते है। हमारा यह मकसद है के इस कृषि ब्लॉग पर आपको अच्छी से अच्छी और नई से नई जानकारी आपको मिले।
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