बायोगैस प्लांट लगाने से बड़नगर के किसान को होने लगी अतिरिक्त आमदनी, बायोगैस प्लांट के विषय में जानिए सबकुछ
बायोगैस प्लांट वर्तमान में प्राकृतिक ऊर्जा का उत्तम स्रोत हो सकता है। इससे घर की ऊर्जा की आपूर्ति हो सकती है। यही कारण है कि किसानों बायोगैस प्लांट लगाकर लाभ कमाने लगे हैं। उज्जैन जिले के बड़नगर के किसान को बायोगैस प्लांट से प्रतिवर्ष अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। जानिए बायोगैस प्लांट के विषय में...
उज्जैन। बड़नगर विकास खण्ड के ग्राम शेरपुर निवासी किसान सुरेश पाटीदार पिता रामेश्वर पाटीदार ने बताया कि उनके कृषि फार्म पर उन्होंने कृषि विभाग की अनुदान योजना में दो घनमीटर के बायोगैस प्लांट का निर्माण कराया था। उन्हें विभाग द्वारा 12 हजार रुपये का अनुदान लाभ दिलवाया गया। बायोगैस बनने से उनके यहां गोबर के कंडे बनाये जाने से परिवार को निजात मिली। गोबर की बचत हुई।
धुए से निजात मिली, आर्थिक लाभ भी हुआ
पहले कंडे जलाने से घर में काफी धुंआ हो जाता था लेकिन अब बायोगैस बनने से उनके घर में दोनों समय भोजन बायोगैस पर तैयार होता है। धुंआ नहीं होने के कारण उनके परिवार का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। बायोगैस प्लांट से उन्हें सबसे अधिक फायदा यह मिला कि जो गोबर सड़कर वेस्ट निकलता है, जिसे बायोगैस स्लरी कहते हैं, उसे वे खेत में खाद के रूप में उपयोग करने लगे हैं और इस प्रकार रासायनिक खाद की बचत हुई। बायोगैस स्लरी और कंडे के ऊपर होने वाले खर्चे की बचत से उन्हें प्रतिवर्ष 10 हजार रुपये का अतिरिक्त फायदा हो रहा है।
जानिए बायोगैस संयंत्र के बारे में…
भारत में मवेशियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है इसलिए बायोगैस के विकास की प्रचुर संभावना है। बायोगैस (मीथेन या गोबर गैस) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके प्राप्त की जाती है। जैव गैस में 75 प्रतिशत मेथेन गैस होती है जो बिना धुँआ उत्पन्न किए जलती है। लकड़ी, चारकोल तथा कोयले के विपरीत यह जलने के पश्चात राख जैसे कोई उपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है।
बायोगैस प्लांट का निर्माण गैस की जरूरत और व्यर्थ पदार्थ की उपलब्धता पर निर्भर करता है। साथ ही डाइजेस्टर के बैच फीडिंग या लगातार फीडिंग पर भी। बायोगैस प्लांट जमीन की सतह या उसके नीचे बनाया जाता है और दोनों मॉडलों के अपने फायदे-नुकसान हैं। सतह पर बना प्लांट रख-रखाव में आसान होता है और उसे सूरज की गर्मी से भी लाभ होता है, लेकिन इसके निर्माण में अधिक ध्यान देना होता है क्योंकि वहां डाइजेस्टर के अंदरूनी दबाव पर ध्यान देना होता है। इसके विपरीत सतह के नीचे स्थित प्लांट निर्माण में आसान लेकिन रख-रखाव में मुश्किल होता है।
ऐसे बनती है बायोगैस
बायोगैस हालिया मृत ऑर्गेनिज्म से बनता है, इसलिए यह वातावरण में कार्बन स्तर को नहीं बिगाड़ती। बायोगैस जीवाश्म ईंधन के बजाय इसलिए भी बेहतर है क्योंकि यह सस्ता और नवीकृत ऊर्जा है। विकासशील देशों के लिए यह फायदेमंद है क्योंकि इसे छोटे संयंत्रों में बनाया जा सकता है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है फसलों से प्राप्त किए जाने वाले ईंधन से खाद्य पदार्थो की कमी हो जाएगी और इससे वन कटाव, जल व मिट्टी में प्रदूषण, या तेल उत्पादक देशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
कैसे काम करता है बायो गैस प्लांट
गोबर गैस प्लांट बनाने के बाद इसे गोबर और पानी के घोल से भर देते हैं. जब प्लांट चलता हो तब उससे निकला लगभग 10 दस प्रतिशत गोबर साथ ही डाल दिया जाता है. गैस की निकलने वाले पाइप बंद कर लगभग 10 से 15 दिनों तक छोड़ दिया जोता है. जब गोबर बाहर आना शुरू हो जाए, तब प्लांट के आकार के अनुसार ताज़ा गोबर डालना शुरू कर दें. ध्यान दें कि गैस को आवश्यकतानुसार ही इस्तेमाल करें.
बायोगैस प्लांट में पशुओं के व्यर्थ पदार्थ या एनर्जी क्रॉप्स के उपयोग से बायोगैस बनाई जाती है। एनर्जी क्रॉप्स को भोजन के बजाय बायोफ्यूल्स के लिए उगाया जाता है। बायोफ्यूल बायोमास कहे जाने वाले मृत ऑर्गेनिक तत्वों से बनाया जाता है और यह तरल, गैसीय या ठोस रूप में हो सकता है। एक बायोगैस प्लांट में एक डाइजेस्टर और गैस होल्डर होता है जो ईंधन निर्माण करता है। प्लांट का डाइजेस्टर एयरटाइट होता है जिसमें व्यर्थ पदार्थ डाला जाता है और गैस होल्डर में गैस का संग्रहण होता है।