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Agriculture Business | मुर्गी पालन एक्स्ट्रा आमदनी का जरिया, जानिए कैसे करें

खेती किसानी के साथ ही किसान पशुपालन करके अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं। पशुपालन में मुर्गी पालन (Agriculture Business) कम लागत में शुरू किया जा सकता है।

Agriculture Business | पारंपरिक मुर्गी पालन यानी बैकयार्ड मुर्गी पालन या फिर घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन की यह पद्धति भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित है। इसमें आमतौर पर पांच 10 मुर्गियों को एक परिवार द्वारा पाला जाता है जो घर और उसके आसपास में अनाज की गिरे दाने झाड़-फूंक के कीड़े मकोड़े घास की कोमल पत्तियां घर की जूठन आदि खा कर पेट भर दी है, उनको पालने में किसी खास घर की जरूरत नहीं होती है और न्यूनतम खर्च पर मुर्गिया पाली जा सकती है।

मुर्गी पालन एक्स्ट्रा आमदनी का जरिया है (Agriculture Business)

मुर्गी पालन से किसानों को एक्स्ट्रा इनकम हो सकती है। कृषि एवं पशुपालन विशेषज्ञों के अनुसार साल भर में प्रति व्यक्ति 180 अंडा और 11 किलोग्राम मास के सापेक्ष महज 70 घंटा 3.8 किलोग्राम उपलब्ध हो पा रहा है। बैकयार्ड मुर्गीपालन से गर्मी क्षेत्र में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को न केवल न्यूनतम खर्च पर मांस और अंडे के रूप में प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है, जिसे बेचकर कुछ एक्स्ट्रा आमदनी भी हासिल की जा सकती है।

अलग से जमीन की आवश्यकता नहीं

पशुपालन विशेषज्ञ डॉ डीके श्रीवास्तव ने बताया कि घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन के लिए किसी एक्स्ट्रा जमीन की जरूरत नहीं होती है इसके लिए मुर्गियों की खरीद के लिए बहुत ही कम पैसों की जरूरत होती है। यानी कि छोटे स्तर पर मुर्गी पालन की शुरुआत करने के दौरान लागत कम आती है। वहीं दूसरी ओर मुर्गियां अवशिष्ट पदार्थ व कीड़े मकोड़ों को उच्च प्रोटीन वाले अंडे को मास में बदल कर न केवल खाद सुरक्षा बल की स्वस्थ पर्यावरण ज्ञात के द्वारा भूमि की उर्वरक का शक्ति बढ़ाने और ग्रामीण इलाकों में पिछड़े किसानों बेरोजगार नौजवानों को रोजगार देकर स्वावलंबी बनती है।

मुर्गियों की यह प्रजातियां बेहतर

घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन के लिए कड़कनाथ, वनराजा, ग्राम प्रिया, गिरि राजा, कैरी निर्भीक, कैरी श्यामा, हितकारी, करवा खेड़ी प्रिया आती है जिन से साल भर में 180 – 208 और 8 – 10 हफ्ते में 1.00 माइनस 1.25 किलोग्राम तक शारीरिक वजन प्राप्त कर लेती है।

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मुर्गी पालन के दौरान ध्यान देने वाली प्रमुख बातें

Agriculture Business | पौध रोग वैज्ञानिक डॉ प्रेम शंकर ने बताया कि देश क मुर्गियों में लोग बहुत ही कम लगते हैं फिर भी बचाव के लिए मरकेस लासोटा गंवोरो अधिक अधिक आवश्यक लगवाना चाहिए। कुलसुम मुर्गियों में बहुत तेजी से पनपते हैं और कम समय में ही मुर्गी मर जाती है इसलिए इलाज से बचाव बेहतर है।

उन्होंने कहा कि मुर्गियों का हमेशा ताजा और साफ पानी पिलाना चाहिए और उसे फिटकरी व एक्वाफ्रेश (5 किलोमीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर) से उपचारित कर के ही पिलाएं। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आरवी सिंह ने बायोसिक्योरिटी पर चर्चा करते हुए कहा कि मुर्गी शाला में किसी भी व्यक्ति को सीधा अंदर न जाने दें। अंदर जाने वाले व्यक्ति को फॉर्मलीन से सैनिटाइज करने के बाद ही जूता चप्पल कपड़ों के बदल कर मुर्गी शाला में जाने से बाहर के रोग अंदर नहीं जा पाएंगे और मुर्गियां सुरक्षित रह कर अधिक उत्पादन दे सकेंगी।

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राधेश्याम मालवीय

मैं राधेश्याम मालवीय Choupal Samachar हिंदी ब्लॉग का Founder हूँ, मैं पत्रकार के साथ एक सफल किसान हूँ, मैं Agriculture से जुड़े विषय में ज्ञान और रुचि रखता हूँ। अगर आपको खेती किसानी से जुड़ी जानकारी चाहिए, तो आप यहां बेझिझक पुछ सकते है। हमारा यह मकसद है के इस कृषि ब्लॉग पर आपको अच्छी से अच्छी और नई से नई जानकारी आपको मिले।
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