खेती-किसानी

अश्वगंधा की खेती करने से मिलेगा दोगुना फायदा

अश्वगंधा की खेती से किसान अत्यधिक मुनाफा (Ashwagandha Cultivation 2022) ले सकते है। इसकी खेती के बारे में जानिए

Ashwagandha Cultivation 2022 | अश्वगंधा एक द्विबीज पत्रीय पौधा है। इसकी जड़ों तथा पत्तियों से घोड़े के मूत्र की गंध आने के कारण ही इसका नाम अश्वगंधा रखा गया। यह सोलेनेसी कुल का पौधा है।पांरपरिक रूप से अश्वगंधा आयुर्वेदिक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ इसे नकदी फसल के रूप में भी उगाया जाता है। जो की किसान को अत्यधिक मुनाफा दिला सकती है, जानिए इसकी खेती के बारे में-

भारत में इन राज्यों में हो रही अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) की खेती

अश्वगंधा की पूरे विश्व में लगभग 3000 जातियाँ पाई जाती हैं। और 90 वंश पाये जाते हैं। इसमें से केवल 2 जातियाँ ही भारत में पाई जाती हैं। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एंव हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है।

अश्वगंधा की मांग बड़ी

कोरोना के चलते सेहतमंद बने रहने के लिए इम्युनिटी बढ़ाने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) औषधि सबसे अहम साबित हुई है। पिछले कुछ सालों में अश्वगंधा की मांग डेढ़ गुना बढ़ गई है। अश्वगंधा का उत्पादन व आपूर्ति कम होने से इसके भाव में बढ़ोतरी है।

भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रति वर्ष 2000 टन है, जबकि जड़ की माँग 7000 टन प्रति वर्ष है। मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्व भाग में लगभग 4000 हेक्टेयर भूमि पर अश्वगंधा की खेती की जा रही है। मध्यप्रदेश के मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा जिलों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है।

अश्वगंधा की खेती कैसे करे

Ashwagandha Cultivation 2022 | अश्वगंधा के पौधे सीधे, अत्यन्त शाखित, सदाबहार तथा झाड़ीनुमा 1.25 मीटर लम्बे पौधे होते हैं। इनकी पत्तियाँ अण्डाकार वह रोमयुक्त होती हैं। इसके फूल हरे, पीले तथा छोटे एंव पाँच के समूह में लगे हुए होते हैं। इसका फल बेरी जो कि मटर के समान दूध युक्त होता है। जो कि पकने पर लाल रंग का होता है। जड़े 30-45 सेमी व 2.5-3.5 सेमी लम्बी। मोटी मूली की तरह होती हैं। इनकी जड़ों का रंग बाहर से भूरा तथा अन्दर से सफेद होता हैं।

  • जलवायु – यह एक खरीफ फसल है। इसकी अच्छी उत्पादन के लिए 20 से 35 डिग्री तापमान एवं 500 से 750 मिमी वार्षिक वर्षा होना आवश्यक है। पौधे की बढ़वार के समय शुष्क मौसम एंव मृदा में प्रचुर नमी होना आवश्यक होता है। शरद ऋतु में 1-2 वर्षा होने पर जड़ों का विकास अच्छा होता है।
  • पर्वतीय क्षेत्रों की अनुपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती को सफलता पूर्वक किया जा सकता है। शुष्क कृषि के लिए भी अश्वगंधा की खेती उपयुक्त है।
  • मिट्टी- अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट अथवा हल्की लाल मृदा जिसका pH 7.5 से 8.0 उपर्युक्त होता है। व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त होती है। पौधे की बढ़वार के समय मृदा में नमी होनी चाहिए।
  • खेत तैयारी- खेत तैयारी में अगस्त और सितम्बर माह में वर्षा होने के बाद जुताई करनी चाहिए। दो बार कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद पाटा लगा देना चाहिए। अश्वगंधा बीज 10-12 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। अच्छी पैदावार के लिए पौधे से पौधे की दूरी 5 सेमी तथा लाइन से लाइन की दूरी 20 सेमी रखना चाहिए।
  • बुवाई की तैयारी- अश्वगंधा के बीज का अंकुरण 6-7 दिन के बाद प्रारम्भ हो जाता है।

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अश्वगंधा की नर्सरी तैयार

  • अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) के अपरिपक्व बीज को बुवाई के लिए नहीं चुनना चाहिए, क्योंकि यह बीज अच्छी तरह से अंकुरित नहीं हो पाते है। लगभग 8 से 12 महीने में पुराने बीज का जमाव 70-80 प्रतिशत तक होता है। बीज के अच्छे अंकुरण के लिए आईएए, जीए 3 अथवा थायोयूरिया का प्रयोग करना चाहिए।
  • अश्वगंधा की नर्सरी को सतह से 5-6 इंच ऊपर उठाकर बनाया जाता है। जिससे कि नर्सरी में जलभराव की समस्या उत्पन्न न हो।
  • बीज बोने से पहले नर्सरी को शोधित करने के लिए डाईइथेन एम-45 के घोल का प्रयोग करना चाहिए।
  • जैविक विधि से नर्सरी को उपचारित करने के लिए गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है।
  • नर्सरी में गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि बीजों का अंकुरण अच्छा हो।
  • बीजों को लाइन में 1-1.25 सेमी गहराई में डालना चाहिए।
  • नर्सरी में बीज की बुवाई जून माह में की जाती है।
  • बीजों में 6-7 दिनों में अंकुरण (Ashwagandha Cultivation 2022) शुरू हो जाता है। जब पौधा 6 सप्ताह का हो जाए तब इसे खेत में रोपित कर देना चाहिए।

अश्वगंधा की उन्नत प्रजातियां

  • डब्यलू एस-20
  • डब्यलू एस-134
  • पोशिता
  • जवाहर असगंध-20 आदि है।
  • खाद एंव उर्वरक- औषधीय पौधे (Ashwagandha Cultivation 2022) जिनकी जड़ों का प्रयोग व्यावसायिक रूप से किया जाता है, उनमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सामान्यतः इस फसल में उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। परन्तु जांच में यह ज्ञात हुआ है कि अमोनियम नाइट्रेट के प्रयोग से जड़ो की अधिकतम उपज प्राप्त होती है। कुछ शोध में जिब्रेलिक एसिड के प्रयोग से भी जड़ों के विकास में अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।
  • खेत की तैयारी करते समय सड़ी गोबर की खाद या जैविक खादों का प्रयोग 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अवश्य करनी चाहिए।
  • बुवाई के 25-30 दिन बाद कतार में से फालतू पौधों को हटा देना चाहिए। लगभग 1 वर्ग मीटर में 30-40 पौधे रखने चाहिए। 1 हेक्टेयर में 3 से 4 लाख पौधे पर्याप्त होते हैं।
  • निराई एंव गुड़ाई- बुवाई के 40-50 दिन बाद एक बार निराई गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए। पौधों की अच्छी बढ़वार तथा अधिक उपज प्राप्त करने के चाहिए फालतू पौधों को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए।
  • सिंचाई- अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) वर्षा ऋतु की फसल है। इसलिए इसमें बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। मृदा में नमी की कम मात्रा होने पर सिंचाई करना अनिवार्य हो जाता है। जलभराव की समस्या होने पर जड़ों का विकास ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इसलिए खेत में जलनिकास की व्यवस्था ठीक प्रकार से कर लेनी चाहिए। जल भराव के अधिक हो जाने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है तथा पौधे मरने लगते हैं।

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240 से 250 दिन में तैयार होती है अश्वगंधा की फसल

  • Ashwagandha Cultivation 2022 | फरवरी-मार्च के महीने में पौधों में फूल एंव फल आना प्रारम्भ हो जाते हैं। अश्वगंधा की फसल अप्रैल-मई में 240-250 दिन के पश्चात खुदाई के योग्य हो जाती है। परिपक्व पौधे की खुदाई की सही अवस्था जानने के लिए फलों का लाल होना और पत्तियों का सूखना आदि बातों का अध्ययन करना चाहिए। खेत में कुछ स्थानों से पौधों को उखाड़ कर उनकी जड़ों को तोड़ कर देखना चाहिए यदि जड़ आसानी से टूट जाए और जड़ों में रेशे न हों तो समझ लेना चाहिए कि फसल खुदाई हेतु तैयार है।
  • सूखी जड़ों को छोटे-छोटे भागों में काट कर साफ कर लेना चाहिए। इन्हें रंग व आकार के आधार पर 4 भागों में बाँटा गया है।
  • एक हेक्टेयर भूमि पर पैदावार- 1 हेक्टेयर भूमि पर 4-5 क्विंटल सूखी जड़ें प्राप्त हो जाती हैं। 8 से 10 सेमी लम्बी तथा 10-15 मिमी व्यास बाली जड़ों को व्यापारिक द्रष्टिकोण से अच्छा माना जाता है। बीज प्राप्त करने के लिए फसल के 5 प्रतिशत भाग की खुदाई नहीं करनी चाहिए। जब पौधों के अधिकतर फल लाल हो जाए तब इन्हें काट कर सुखाने के पश्चात बीज निकाल लेना चाहिए।‌

अश्वगंधा के फायदे

अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में प्रयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा है। आयुर्वेद मे अशवगंधा को मेध्य रसायन भी कहते है जिससे हमारी दिमाग की याददास्त तथा एकाग्रता बढाने के लिए उपयोग किया जाता है

  • अश्वगंधा को जीणोद्धारक औषधि के रूप में जाना जाता है। इसमें एंटी ट्यूमर एंव एंटी बायोटिक गुण भी पाया जाता है।
  • ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है, इसकी जड़ों और पत्तियों में पाए जाने वाले फ्लेवोनोइड्स का उपयोग डायबिटीज को ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • अश्वगंधा तनाव को दूर करता है।
  • अश्वगंधा एंग्जाइटी दूर करता है।
  • अश्वगंधा पुरुषों में प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है।
  • अश्वगंधा (Ashwagandha Cultivation 2022) गठिया रोग से निजात दिलाता है।
  • अश्वगंधा इम्युनिटी बढ़ाता है।

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राधेश्याम मालवीय

मैं राधेश्याम मालवीय Choupal Samachar हिंदी ब्लॉग का Founder हूँ, मैं पत्रकार के साथ एक सफल किसान हूँ, मैं Agriculture से जुड़े विषय में ज्ञान और रुचि रखता हूँ। अगर आपको खेती किसानी से जुड़ी जानकारी चाहिए, तो आप यहां बेझिझक पुछ सकते है। हमारा यह मकसद है के इस कृषि ब्लॉग पर आपको अच्छी से अच्छी और नई से नई जानकारी आपको मिले।
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