सोयाबीन में कौन सा खाद डालें जिससे उत्पादन अधिक मिलेगा, कृषि विशेषज्ञों से जानें
खरपतवार नाशक दवाई छिड़कने के कब सोयाबीन (Beneficial Fertilizers for Soybeans) कमजोर हो गए हैं। सोयाबीन की अच्छी ग्रोथ के लिए कृषि विशेषज्ञ क्या कहते हैं जानिए
गलत्या खेत में सोयाबीन की बढ़वार (Beneficial Fertilizers for Soybeans) के लिए यह करें
सोयाबीन फसल में पीलापन दूर करने के लिए यह करें
सोयाबीन में कीट रोग प्रबंधन के लिए यह करें
खरपतवार नियंत्रण के लिए इन बातों का विशेष ध्यान रखें
सोयाबीन में रसायनिक दवाई का प्रयोग कब करें
- जब आप दवाई डाल रहे हो तब खेत में अच्छी (Beneficial Fertilizers for Soybeans) नमी होना चाहिए।
- सूखे खेत में दवाई ना डाले।
- जिस दिन दवाई डाल रहे हो उस दिन बारिश नही आना चाहिए। मौसम देखकर दवाई डाले।
- बारिश के बाद जब थोड़ी धूप निकले, हवा चले तब दवा डालेंगे तो दवा असर अच्छा करेगी।
- अगर ज्यादा खरपतवार है तो आप अगर उदाहरण प्रति एकड़ आप 10 टंकी का का छिड़काव कर रहे हो तो आप उसे 12 टंकी कर दवाई नही बढाना है पानी बढाए।
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किसानों को सम-सामयिक सलाह : सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिए यह करें
सोयाबीन फसल में रोग की पहचान इस प्रकार करें
फसल बोने के बाद से ही फसल निगरानी करें। यदि सम्भव हो तो लाइट ट्रेप तथा फेरोमेन टूब का उपयोग करें।
बीजोपचार आवश्यक है। उसके बाद रोग नियंत्रण के लिये फंफूद के आक्रमण से बीज (Beneficial Fertilizers for Soybeans) सड़न रोकने हेतु कार्बेंडाजिम 1 ग्राम / 2 ग्राम थीरम के मिश्रण से प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित करना चाहिये। थीरम के स्थान पर केप्टान एवं कार्बेंडाजिम के स्थान पर थायोफेनेट मिथाइल का प्रयोग किया जा सकता है।
पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फुंद जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिये कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू.पी. या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यू.पी. 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिये। पहला छिड़काव 30-35 दिन की अवस्था पर तथा दूसरा छिड़काव 40-45 दिन की अवस्था पर करना चाहिये।
बैक्टीरियल पश्च्यूल नामक रोग को नियंत्रित करने के लिये स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 पीपीएम 200 मिग्रा दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कॉपर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में मिश्रण करना चाहिये। इसके लिये 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन एवं 20 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का घोल बनाकर उपयोग कर सकते हैं।
गेरुआ प्रभावित क्षेत्रों (जैसे बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी) में गेरुआ के लिये सहनशील जातियां लगायें तथा रोगों के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही 1 मि.ली. प्रति लीटर की दर से हेक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या ऑक्सीकार्बोजिम 10 ग्राम प्रति लीटर की दर से ट्रायएडिमीफान 25 डब्ल्यूपी दवा के घोल का छिड़काव करें।
विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग व वड व्लाइट रोग प्राय: एफ्रिडस सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि द्वारा फेलते हैं।
अत: केवल रोग रहित स्वस्थ बीज (Beneficial Fertilizers for Soybeans) का उपयोग करना चाहिये एवं रोग फेलाने वाले कीड़ों के लिये थायोमेथेक्जोन 70 डब्ल्यू एस. से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों का खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी., 400 मि.ली. प्रति एकड़, मिथाइल डेमेटान 25 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, डायमिथोएट 30 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, थायोमिथेजेम 25 डब्ल्यू जी 400 ग्राम प्रति एकड़।
पीला मोजेक प्रभावित क्षेत्रों में रोग के लिये ग्राही फसलों (मूंग, उड़द, बरबटी) की केवल प्रतिरोधी जातियां ही गर्मी के मौसम में लगायें तथा गर्मी की फसलों में सफेद मक्खी का नियमित नियंत्रण करें।
- नीम की निम्बोली का अर्क डिफोलियेटर्स के नियंत्रण के लिये कारगर साबित हुआ है।
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