बासमती धान की यह नई किस्में क्रांति लाएगी, मिलेगी दोगुनी उपज
धान (Dhaan ki Unnat nai kismen) की अच्छी पैदावार के लिए किसान इन उन्नत किस्मों का चयन कर सकते है, जानिए
Dhaan ki Unnat nai kismen | धान खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली मुख्य फसल है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है। धान की खेती से पूर्व अगर कुछ बातों का शुरू से ही ध्यान रखा जाए तो, धान की फसल ज्यादा मुनाफा देगी। धान की इस वर्ष विकसित की गई उन्नत किस्में अच्छा उत्पादन कर सकते हैं। धान की इन नई वैरायटीयों के विषय में विस्तार से जानिए
बासमती धान नई किस्में (Dhaan ki Unnat nai kismen) क्रांति लाएगी
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा हाल ही में धान की 3 किस्में विकसित की गई है, जो इस फसल में लगने वाले जीवाणु झुलसा रोग, बैक्टीरियल ब्लाइट और झोंका यानी गर्दन तोड़ रोग प्रतिरोधी है। बासमती धान की यह नई किस्में अधिक उपज देने वाली व रोगरोधी है, जानिए इनके बारे में
पूसा बासमती – 1885 – (झुलसा और झोंका रोगरोधी)
डॉक्टर एके सिंह ने बताया कि संस्थान द्वारा पूर्व में विकसित और प्रचलित धान की किस्म पूसा बासमती – 1121 को सुधार कर और रोग रोधी बनाकर नई किस्म पूसा बासमती 1885 विकसित की गई है। इसकी परिपक्वता अवधि 145 दिन की है। पकाने के बाद चावल की लंबाई और फैलाव भी पूर्व की 1121 किस्म के समान है, इसमें झोंका रोग नहीं लगता है।
पूसा बासमती – 1847 – (झुलसा और झोंका रोग रोधी)
डॉक्टर एके सिंह ने जानकारी दी कि पूसा बासमती – 1509 को सुधार कर पूसा बासमती – 1847 किस्म विकसित की गई है। इसकी 125 दिन की परिपक्वता अवधि है और अन्य गुण 1509 किस्म के समान है। पूसा बासमती – 1509 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ अधिक उपज देती है।
पूसा बासमती – 1886 (झुलसा और झोंका रोगरोधी)
पूसा बासमती 1401 को झुलसा और झोंका रोगरोधी बनाकर पूसा बासमती – 1886 विकसित की गई है, जिस की गुणवत्ता भी अधिक है और 155 दिन में पकने वाली किस्म है। यह यूरोपीय संघ को निर्यात करने के लिए एक पसंदीदा गुणवत्ता वाला धान है।
डॉक्टर एके सिंह ने बताया कि जीवाणु झुलसा रोग, बैक्टीरियल ब्लाइट और झोंका यानी गर्दन तोड़ रोग (ब्लास्ट) की रोकथाम के लिए किसान अधिक मात्रा में फफूंदनाशी, एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करते हैं, जिससे रसायनिक अवशेष बड़ी मात्रा में चावल में रह जाते हैं। यूरोपीय यूनियन देशों में, जो बासमती चावल वर्ष 2017 में 5 लाख टन निर्यात होता था, इन्हीं दवा अवशेषों के कारण वर्ष 2019 में घटकर 2.5 लाख यानी आधा रह गया। सबसे ज्यादा निर्यात पूसा बासमती – 1805 ही होता था।
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पूर्वांचल के लिए अनुशंसित धान की किस्में
असिंचित दशा में : नरेंद्र – 118, नरेंद्र -97, साकेत -4, बरानी दीप, शुष्क सम्राट, नरेंद्र लालमनी। धान की यह किस्म 90 – 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है और इनका बुवाई का समय – 15 जून से जुलाई का पहला हफ्ता। इसकी सीधी बुवाई की जाती है।
सिंचित दशा में – सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्मों में पूसा – 169, नरेन्द्र – 80, पंत धान – 12, मालवीय धान – 3022, नरेन्द्र धान – 2065। इनकी पैदावार 60-65 क्विटंल प्रति हैक्टेयर।
मध्यम पकने वाली किस्मों में– पंत धान -10, पंत धान – 4, सरजू -52, नरेंद्र – 359, नरेंद्र – 2064, पूसा -44, पीएनआर – 381, प्रमुख किस्में है, जो 125 -135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इनकी पैदावार 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
ऊसरीली भूमि के लिए धान की किस्में – नरेंद्र उसर धान -3, नरेंद्र धान – 5050, नरेंद्र ऊसर – 2008। इनकी अवधि 125 – 145 दिन है। इनकी पैदावार 45 – 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
जल भराव क्षेत्र के लिए किस्में– वीपीटी – 5204, एएनडीआर – 8002, स्वर्णा सब – 1, जो 145 – 155 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
सुगंधित किस्में– टा – 3, बासमती – 370, पूसा बासमती – 1, नरेंद्र सुगंधा। यह किस्म 130-140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इनकी पैदावार 30-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
कैसे करें धान की खेती
धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का अच्छा होना जरूरी है। कई बार किसान खेती में महंगा बीज- खाद तो लगाते हैं, लेकिन उनको अपनी सही उपज नहीं मिल पाती है। अच्छी उपज पाने के लिए, किसानों को अपनी फसल की बुवाई से पहले बीज व खेत का उपचार कर लेना चाहिए। बीज महंगा होना जरूरी नहीं है, बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए।
धान की नर्सरी डालने का उचित समय
मई महीने के आखिरी हफ्ते में नर्सरी डाल देनी चाहिए। धान की जो किस्में मध्यम से देर से पकती है तो उनकी रोपाई जून के प्रथम पखवारे तक नर्सरी अवश्य डाल दे। सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे हफ्ते में डालने चाहिए।
क्यारियां तैयार करना – धान की नर्सरी क्यारियां बनाकर तैयार की जाती है। इसके लिए एक से डेढ़ से मीटर चौड़ी तथा चार से पांच मीटर लंबी क्यारियां तैयार करना पड़ती है।
बीज की मात्रा
बीज की दर प्रति वर्गमीटर पौधों की सघनता, बिचड़े की उम्र आदि बीज के आकार पर निर्भर करता है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन किस्में 30 किलोग्राम, मध्यम 35 किलोग्राम, मोटे धान 40 किलोग्राम, ऊसर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
नर्सरी के लिए क्षेत्रफल एवं क्यारियां- एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए 80 – 1000 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र की जरूरत होती है। पौधे तैयार करने के लिए 1 पॉइंट 5 मीटर चौड़ी व 8 मीटर लंबी क्या रिया बना लेते हैं और प्रति क्यारी (10 वर्ग मीटर) में 225 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 50 ग्राम जिंक सल्फेट मिलाते हैं।
ऐसे बीज अंकुरित करें
नर्सरी डालने से पहले स्ट्रेपटोमायसीन सल्फेट 90 फ़ीसदी + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 वीं सदी की 4 ग्राम मात्रा 100 लीटर पानी में मिलाकर बीज को घोल में रात भर भिगो दें। दूसरे दिन बिज को छान कर उपचारित बिज को गिले बोरे में लपेटकर ठंडे कमरे में रखे। समय-समय पर इस बोरे पर पानी का छींटा देते रहे।
लगभग 36 – 48 घंटे बाद बोरे को खोलें। बीज अंकुरित होकर नर्सरी डालने के लिए तैयार हो जाते हैं। पहले से बनी क्यारियों में शाम को पानी भर कर अंकुरित बीज की बुवाई करें। अगर मौसम गर्म हो, तो दूसरे दिन सुबह पानी निकाल दे और जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहे। 21 – 25 दिन में रोपने योग्य नर्सरी तैयार हो जाती है।
धान की खेती के लिए जरूरी बात
Dhaan ki Unnat nai kismen | धान की खेती करने वाले किसानों के लिए जगह के हिसाब से ही धान की किस्में विकसित की जाती है, इसलिए किसानों को अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्म की ही खेती करनी चाहिए। मई महीने की शुरुआत से किसानों को खेती की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए, ताकि मानसून आते ही धान की रोपाई कर दे। किसानों को बीज शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए। बीज शोधन करके ही धान को कई तरह के रोगों के टोल से बचाया जा सकता है।
अधिकतर किसान बीज विक्रेता, अपने पड़ोसी या रिश्तेदार के कहने पर ही धान का बीज चुनते हैं, जबकि प्रदेश में अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से धान की किस्मों को विकसित किया गया है, क्योंकि हर जगह की मिट्टी, वातावरण अलग अलग तरह की होती है। अपने क्षेत्र के लिए विकसित धान की किस्मों का चयन करें, तभी अच्छी पैदावार मिलेगी।
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