खेती-किसानी

अलसी की वैज्ञानिक तरीके से खेती करें, बढ़िया मुनाफा मिलेगा

तिलहन फसल अलसी (linseed cultivation 2022 ) की वैज्ञानिक तरीके से खेती कैसे करें, इससे बढ़िया मुनाफा मिल सकता है, जानें इसके बारे में...

linseed cultivation 2022 | अलसी विश्व की छठी सबसे बड़ी तिलहन फसल है। अलसी के फायदों को देखते हुए इसकी खेती के प्रति रूझान लगातार बढ़ रहा है। भारत में यह एक महत्वपूर्ण रबी तिलहन फसल और तेल और रेशे का एक प्रमुख स्रोत भी है। देश में अलसी की खेती लगभग 2.96 लाख हैक्टर क्षेत्र में होती है, जो विश्व के कुल क्षेत्रफल का 15 प्रतिशत है। हम आपको चौपाल समाचार के इस माध्यम से अलसी (linseed cultivation 2022) की वैज्ञानिक तरीके से खेती के बारे में बताएंगे..

अलसी क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में द्वितीय स्थान है, उत्पादन में तीसरा तथा उपज प्रति हेक्टेयर में आठवाँ स्थान रखता है। बता दें कि यह देश की सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक तिलहन फसल है। अलग-अलग किस्मो के आधार पर इसकी पैदावार भी अलग होती है। इसकी फसल  (linseed cultivation 2022) से 10 से 15 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर खेत से प्राप्त किये जा सकते है।

इन क्षेत्रों के लिए उपर्युक्त

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार प्रमुख अलसी (linseed cultivation 2022) उत्पादक राज्य हैं। देश में अलसी मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और बिहार राज्यों में उगाई जाती है। अलसी (linseed cultivation 2022) के प्रत्येक भाग का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न रूपों में उपयोग किया जा सकता है। अलसी के बीज से निकलने वाला तेल प्राय: खाने के रूप में उपयोग में नही लिया जाता है बल्कि दवाइयाँ बनाई जाती है।

अलसी की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु

अलसी की खेती (linseed cultivation 2022) के लिए इसकी बुआई से पहले खेत यानि भूमि का चयन करना होगा। अलसी बोने से पहले अपने खेत की मिट्टी और जल की जांच अवश्य कराएं। अलसी की खेती के लिए काली दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। यह अधिक उपजाऊ होती है। वहीं जमीन तैयार करते समय ध्यान रखें कि भूमि में जल निकास की व्यवस्था हो। इससे फसल में सिंचाई करने में भी सुविधा रहेगी साथ ही फसल की पैदावार बढेगी।

अलसी के लिए (linseed cultivation 2022) सामान्य पीएच मान वाली भूमि उपयुक्त होती है। अलसी की खेती को ठंडे व शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। अलसी की खेती भारत में अधिकतर रबी सीजन की जाती है। इस दौरान वार्षिक वर्षा 50 से 55 सेटीमीटर होती है. वहां इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। अलसी के उचित अंकुरण के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान तथा बीज बनते समय तापमान 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

अलसी को परिपक्व अवस्था पर उच्च तापमान, कम नमी तथा शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। यानि की इसकी खेती (linseed cultivation 2022) के लिए सम-शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है।

अलसी की बुवाई का समय

किसान साथी अलसी के बीजों की बुवाई (linseed cultivation 2022) के लिए सिंचित जगहों पर नवंबर और असिंचित क्षेत्रो में अक्टूबर के प्रथम पखवाडे में बुवाई करें। इसके अलावा उतेरा खेती के लिये धान कटने के 7 दिन पूर्व बुवाई की जानी चाहिये। बता दें कि उतेरा पद्धति धान लगाये जाने वाले क्षेत्रों में प्रचलित है। धान की खेती में नमी का सदुपयोग करने हेतु धान के खेत में अलसी बोई जाती है।

उतेरा पद्धति में धान फसल कटाई के 7 दिन पहले ही खेत में अलसी के बीज को छिटक दिया जाता है। इससे धान की कटाई से पहले ही अलसी का अंकुरण हो जाता है। इससे यह फायदा होता है की संचित नमी से ही अलसी की फसल (linseed cultivation 2022) पककर तैयार की जाती है। जल्दी बोनी करने पर अलसी की फसल को फली मक्खी एवं पाउडरी मिल्डयू आदि से बचाया जा सकता है ।

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अलसी की उन्नत किस्में कौन कौन सी है ?

अलसी की उन्नत किस्में (linseed cultivation 2022) कृषि अनुसंधान द्वारा तैयार की जाती हैं। असिंचित क्षेत्रों के लिए एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए असली के किस्मों को दो भागों में बाटा है, जिन्हे अधिक उत्पादन और जलवायु के हिसाब से उगाया जाता है।

सिंचित क्षेत्रों के लिये – सुयोग, जे एल एस- 23, पूसा- 2, पी के डी एल- 41, टी- 397 आदि प्रमुख है। इन किस्मों को सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार किया है। इन किस्मों को लगभग दोनों ही क्षेत्र में उगा सकते हैं। और इनकी पैदावार 13 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है।

असिंचित क्षेत्रों के लिये – शीतल, रश्मि, भारदा, इंदिरा अलसी- 32, जे एल एस- 67, जे एल एस- 66, जे एल एस- 73, आदि प्रमुख है। इन किस्मों को असिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए तैयार किया गया है। इन किस्मों में लगने वाले पौधों की लम्बाई औसतन 2 फीट होती है। और पैदावार 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से हो सकती है।

अलसी की किस्में – इसके अलावा अलसी की कई अन्य उन्नत किस्में भी है जैसे – पी के डी एल 42, जवाहर अलसी दृ 552, जे. एल. एस. – 27, एलजी 185, जे. एल. एस. – 67, पी के डी एल 41, जवाहर अलसी – 7, आर एल – 933, आर एल 914, जवाहर 23, पूसा 2 आदि। (linseed cultivation 2022)

अलसी का बीजोपचार कैसे करें ?

(linseed cultivation 2022)

अलसी के बीजों की बुवाई खेत में दो प्रकार से की जाती है। पहले ड्रिल विधि द्वारा एवं दूसरी उतेरा (छिडक़कर) पद्धति से बीजों की बुवाई की जा सकती है। ड्रिल विधि अलसी की बुवाई के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों की आवश्यकता होती है। इस विधि में कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये। बीज को भूमि में 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिये।

उतेरा पद्वति के लिये 40 से 45 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर अलसी (linseed cultivation 2022) की बुआई के लिए उपयुक्त है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये या ट्राइकोडरमा विरीडी की 5 ग्राम मात्रा या ट्राइकोडरमा हारजिएनम की 5 ग्राम एवं कार्बाक्सिन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए।

अलसी के लिए खेत तैयार

अलसी की खेती (linseed cultivation 2022) में बीज के अंकुरण और उचित फसल वृद्धि के लिए आवश्यक है, कि बुआई से पूर्व खेत को उचित प्रकार से तैयार कर लिया जाए। फसल कटाई के पश्चात खेत में 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर गली सड़ी गोबर की खाद का छिडक़ाव कर मिट्टी पलटने वाले देशी हल या हैरो से 2 से 3 बार जुताई कर गोबर की खाद को मिलाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए, जिससे भूमि में नमी बनी रहे।

खेत तैयार में कितनी खाद कब डालें ?

अलसी की खेती (linseed cultivation 2022) के लिए भूमि को तैयार करते समय 8 से 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद आखिरी जुताई में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला कर करें। इसके साथ सिंचित क्षेत्रों हेतु नाइट्रोजन 100 किलोग्राम, फॉस्फोरस 75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें और असिंचित क्षेत्र के लिए अच्छी उपज प्राप्ति हेतु नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस 40 कि.ग्रा. एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश की दर से प्रयोग करें। (linseed cultivation 2022)

असिंचित दशा में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा तथा सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय चोगे द्वारा 2-3 से.मी. नीचे प्रयोग करें। सिंचित दशा में नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रुप में प्रथम सिंचाई के बाद करें। (linseed cultivation 2022)

रोग और कीटों से बचाव कैसे करें ?

अलसी की खेती (linseed cultivation 2022) में अल्टरनेरिया झुलसा, रतुआ या गेरुई, उकठा एवं बुकनी रोग लगता है। इसकी रोकथाम के लिए फसल में मैन्कोजेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 40 से 50 दिन बुवाई के बाद छिडकाव करे, तथा हर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे की रोग न लग सके। रतुआ या गेरुई तथा बुकनी रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए।

कीट प्रकोप – अलसी की फसल (linseed cultivation 2022) में फली मक्खी, इल्ली आदि कई तरह के कीटों का प्रकोप होता है। इसके प्रौढ़ कीट गहरे नारंगी रंग के छोटी मक्खी जैसे होते हैं। ये कीट अपने अंडे फूलो की पंखुडियों में देते है, जिससे पौधे में फूलों से बीज नहीं बन पाते है।

यह कीट पैदावार को 70 प्रतिशत तक प्रभावित करता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी, 750 मिलीलीटर या क्युनालफास 1.5 लीटर मात्रा 900 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए। (linseed cultivation 2022)

अलसी का तेल बहुउपयोगी

अलसी देश की महत्वपूर्ण औद्योगिक तिलहन (linseed cultivation 2022) फसलों में से एक है। भारत में अलसी की खेती को व्यापारिक उद्देश्य से उगाया जाता है। इसकी खेती रेशेदार फसल के रूप में की जाती है। अलसी के बीजो में तेल की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है, किन्तु इसके तेल का उपयोग खाने में न करके दवाइयों को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

इसके तेल को वार्निश, स्नेहक, पेंट्स को बनाने के अलावा प्रिंटिंग प्रेस के लिए स्याही और इंक पैड को तैयार करने में किया जाता है। म.प्र. के बुन्देलखंड क्षेत्र में इसका तेल खाने में, साबुन बनाने तथा दीपक जलाने में किया जाता है। इसका बीज फोड़ों फुन्सी में पुल्टिस बनाकर प्रयोग किया जाता है।

अलसी (linseed cultivation 2022) के तने से उच्च गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त किया जाता है व रेशे से लिनेन तैयार किया जाता है। अलसी की खली दूध देने वाले जानवरों के लिये पशु आहार के रूप में उपयोग की जाती है वहींं खली में विभिन्न पौध पौषक तत्वों की उचित मात्रा होने के कारण इसका उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।

लाभदायक है अलसी का तेल

अलसी का सेवन (linseed cultivation 2022) मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक है। इसके बीज और इसका तेल कई बीमारियों की रोकथाम में लाभदायक है। यहां इसके सेवन के फायदे बताए जा रहे हैं –

  • अलसी विश्व की छठी सबसे बड़ी तिलहन फसल है। इसमें लगभग 33 से 45 प्रतिशत तेल और 24 प्रतिशत कच्चे प्रोटीन होता है, यह एक चमत्कारी आहार है।
  • इसमें दो आवश्यक फैटी एसिड पाए जाते हैं, अल्फा-लिनोलेनिक एसिड और लिनोलेनिक एसिड।
  • अलसी के नियमित सेवन किया जाए तो कई प्रकार के रोगों जैसे कैंसर, टी.बी., हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, कब्ज, जोड़ों का दर्द आदि कई रोगों से बचा जा सकता है।
  • यह हमारे शरीर में अच्छे कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाता है और ट्राइग्लिसराइड कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करने में सहायक होता है।
  • यह हमारे हृदय की धमनियों में खून के थक्के बनाने से रोकता है और हृदय घात व स्ट्रोक जैसी बीमारियों से भी हमारा बचाव करता है।
  • यह एंटीबैक्टेरियल, एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटीऑक्सीडेंट तथा कैंसर रोधी है।
  • अलसी में लगभग 28 प्रतिशत रेशा होता है और यह कब्ज के रोगियों के लिए बहुत राहतमंद साबित होता है। (linseed cultivation 2022)

फसल कटाई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

अलसी की फसल (linseed cultivation 2022) बीजों की रोपाई के लगभग 100 से 120 दिनों बाद तैयारी हो जाती है। सामान्य भाषा में कहां जाये तो इसकी फसल जब फसल पूर्ण रूप से सूखकर पक जाए तभी कटाई करनी चाहिए। फसल की कटाई के तुरंत बाद मड़ाई कर लेनी चाहिए। इससे इसके बीजों का नुकसान नहीं होगा।

अलसी की फसल की उपरोक्त विधि से खेती करने पर, अलग-अलग किस्मों की पैदावार अलग-अलग होती है, प्रथम बीज उद्देशीय सिंचित दशा में 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित दशा में 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और दो-उद्देशीय संचित एवं असिंचित दशा में 20 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 13 से 17 प्रतिशत तेल व 38 से 45 प्रतिशत तक रेशा प्राप्त किया सकता है। (linseed cultivation 2022)

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राधेश्याम मालवीय

मैं राधेश्याम मालवीय Choupal Samachar हिंदी ब्लॉग का Founder हूँ, मैं पत्रकार के साथ एक सफल किसान हूँ, मैं Agriculture से जुड़े विषय में ज्ञान और रुचि रखता हूँ। अगर आपको खेती किसानी से जुड़ी जानकारी चाहिए, तो आप यहां बेझिझक पुछ सकते है। हमारा यह मकसद है के इस कृषि ब्लॉग पर आपको अच्छी से अच्छी और नई से नई जानकारी आपको मिले।
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