जरूरत से कम बारिश, बिगड़ेगी जीडीपी की हालत, क्यों बादलों पर टिकी हैं एक्सपर्ट की निगाहें? जानें
देश एवं प्रदेश मे कम बारिश ( Mansun Experts Report 2022 ) हुई है उसे जीडीपी की हालत बिगड़ती हुई नजर आ रही है, एक्सपर्ट क्या मानते हैं, जानिए
Mansun Experts Report 2022 : समय पर दस्तक देने के बाद मानसून पिछले दो-तीन दिन से कमजोर पड़ गया है। हालत यह है देश के अन्य राज्यों के साथ ही मध्यप्रदेश के आधे हिस्से में अब तक की जरूरत से 19% से लेकर 88% तक कम बारिश हुई है। एग्रीकल्चर एक्सपर्ट कहते हैं इसका असर यह हुआ है कि इन इलाकों में सोयाबीन और धान की बोवनी में 8 दिन की देरी होगी। तमाम एक्सपर्ट और आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं कि अगर भारतीय कृषि क्षेत्र को नुकसान पहुंचता है तो इसका खामियाजा पूरी अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ सकता है, इस पर ताजा चिंता मानसून को लेकर है, जो अभी तक उम्मीद के मुताबिक नहीं दिखा है।
पिछले दो-तीन दिन से मध्यप्रदेश के ज्यादातर हिस्सों में धूप चटक रही है। बारिश का अता पता नहीं है। मौसम वैज्ञानिक पीके साहा इसकी वजह बताते हुए कहते हैं की मानसून की अरब सागर और बंगाल की खाड़ी वाली दोनों ब्रांच ज्यादा सक्रिय नहीं है। आस पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसके कारण बादल बन सके और बारिश हो। शाह ने यह भी बताया है कि अभी तीन-चार दिन बाद बारिश का दौर आने का अनुमान है।
मानसून ( Mansun Experts Report 2022 ) में देरी चिंताजनक
भारत को कृषि प्रधान देश ऐसे ही नहीं कहा गया है। भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए मानसून इसलिए भी काफी अहमियत रखता है, क्योंकि यहां सालभर में होने वाली कुल बारिश का 70 फीसदी पानी सिर्फ मानसून में बरसता है। इतना ही नहीं 60 फीसदी कृषि योग्य भूमि की सिंचाई भी मानसून की बारिश से ही होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल फरवरी-मार्च में ही तापमान बढ़ने से पहले ही कृषि क्षेत्र पर मुसीबत आ चुकी है, अब खराब मानसून को झेलना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए किसी आपदा से कम नहीं होगा।
देश की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर
कमोडिटी एक्सपर्ट और केडिया एडवाइजरी के डाइरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि भारत की करीब आधी आबादी (65 करोड़ लोग) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हैं। अगर मानसून खराब रहा और बारिश कम हुई तो निश्चित तौर पर अनाज की पैदावार भी कम होगी और महंगाई एक बार फिर अपना सिर उठाएगी। हालांकि, अगर मानसून बेहतर रहा तो खाद्य सुरक्षा और खाद्य महंगाई दोनों मोर्चे पर राहत मिल सकती है।
रबी फसलों पर पढ़ा असर
इस साल मार्च महीने में औसतन ज्यादा तापमान रहा जिसका सीधा असर रबी की फसलों पर पड़ा है। इससे गेहूं का कुल उत्पादन 5 फीसदी घटने का अनुमान है। पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान था, लेकिन तापमान बढ़ने की वजह से इसे 5 फीसदी घटाकर 10.64 करोड़ टन कर दिया गया। कम उत्पादन की वजह से ही सरकार को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा है।
मौसम विभाग कर रहा अच्छी बारिश का दावा
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस साल बेहतर बारिश का दावा किया है। मौसम विभाग का मानना है कि मानूसन अभी भले ही सुस्त है लेकिन जल्द ही यह रफ्तार पकड़ेगा। इधर मौसम की भविष्यवाणी के साथ इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रधान वैज्ञानिक और प्रोफेसर विनोद सहगल ने कहा, अभी चिंता की कोई बात नहीं है। जुलाई में हम बेहतर बारिश की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर जुलाई के पहले सप्ताह तक अच्छी बारिश नहीं हुई और डेफिसिट में बढ़ोतरी होती है तो खरीफ की फसल पर संकट आ सकता है। पहले ही भीषण तापमान ने जमीन की नमी को खत्म कर दिया है। लिहाजा अगर अच्छी बारिश नहीं होती है तो इसकी फर्टिलिटी पर भी असर पड़ेगा।
मानसून की देरी का असर पंजाब-हरियाणा पर नहीं
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के किसान सिंचाई के लिए बारिश पर ज्यादा निर्भर नहीं करते, क्योंकि यहां ट्यूबवेल, नहर जैसी सुविधाओं की भरमार है। पजाब के 98 फीसदी किसानों के पास सिंचाई सुविधा है, लेकिन देश के अन्य राज्यों पर खराब मानसून का गंभीर असर पड़ सकता है। मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र के किसानों को मानसून की बारिश का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है।
चौंकाने वाली है विशेषज्ञों की रिपोर्ट
मानसून को लेकर तमाम विशेषज्ञों की ओर से जारी रिपोर्ट चौंकाने के साथ चिंताएं भी पैदा करती है। स्काईमेट वेदर के अध्यक्ष (मौसम) और मौसमविज्ञानी जीपी शर्मा के अनुसार, जून के पहले हाफ में बारिश अनुमान से 80 फीसदी कम रही है, जो निश्चित तौर पर पैदावार को प्रभावित करेगी। अब दूसरा हाफ भी उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। कुछ रिपोर्ट तो यहां तक कहती हैं कि अगले दो महीने तक बारिश अनुमान से कम ही रहेगी। कुल मिलाकर यह यह स्थिति चिंताजनक है।
मानसून के लिए जुलाई माह अति महत्वपूर्ण
अगर बारिश में कमी जुलाई के दूसरे और तीसरे सप्ताह भी जारी रही तो यह निश्चित तौर पर गंभीर हालात होंगे। साफ शब्दों में कहें तो हम मौसम की यह मार झेलने की स्थिति में बिलकुल भी नहीं हैं। अगर ऐसा होता है तो इससे उपजे संकट से निपटने की तैयारी भी फिलहाल नहीं है।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पहले ही बिगाड़ रखी है हालत
Mansun Experts Report 2022 : रूस और यूक्रेन की बीच जारी युद्ध ने न सिर्फ इन दोनों देशों पर संकट डाला, बल्कि पूरी दुनिया के सामाने आर्थिक और खाद्य चुनौतियां पैदा कर दी हैं, ये दोनों देश मिलकर पूरी दुनिया का करीब 25 फीसदी गेहूं निर्यात करते हैं। यहां युद्ध का संकट बढ़ने से गेहूं की सप्लाई पर असर पड़ा और दुनियाभर में खाद्य संकट बढ़ गया। भारत में भी पैदावार कम होने से दूसरे देशों को गेहूं निर्यात नहीं किया जा सकता है।
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