परमाकल्चर फार्मिंग : आईआईटी पास युवा किसान दंपति ने खेती की मिसाल पेश की
उच्च शिक्षित दम्पत्ति ने नौकरी छोड़कर खेतीबाड़ी का रास्ता अपनाया। उन्होंने परमाकल्चर फार्मिंग (Permaculture Farming) तकनीक से खेती कर मिसाल पेश की।
Permaculture Farming | वर्तमान दौर में जब खेती किसानी से युवा वर्ग मुंह मोड़ रहे हैं वहीं किसान परंपरागत खेती करके परेशानी का सामना कर रहे है। वहीं दूसरी ओर उज्जैन जिले में निवासरत उच्च शिक्षित दम्पत्ति आईआईटी पासआऊट ने एक अच्छी नौकरी छोड़कर खेतीबाड़ी का रास्ता अपनाकर आने वाले समय में प्रकृति खतरे में न पड़े इस ओर अधिक ध्यान देने पर बल दे रहे हैं। उक्त दम्पत्ति अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिये वे कुछ समय के लिये ऑनलाइन जॉब कर रहे हैं।
काली मिट्टी में शुरू की खेती (Permaculture Farming)
खेती किसानी एवं प्रकृति से जुड़ाव महसूस करते हुए प्रकृति के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए इस दम्पत्ति ने उज्जैन जिले के बड़नगर में अपने दोस्त की मदद से काली मिट्टी वाली जमीन खरीदी। उच्च शिक्षित दोनों पति पत्नी इसी काली मिट्टी वाली जमीन पर परमाकल्चर फार्मिंग कर करके किसानों एवं आम लोगों को नया संदेश प्रदान कर रहे हैं। आइए जानते हैं पर्माकल्चर फार्मिंग कैसे होती है, क्या है खेती की यह तकनीक।
परमाकल्चर फार्मिंग कैसे होती है?
परमाकल्चर फार्मिंग के लिए काली मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है इसी को ध्यान में रखते हुए दोनों ने बड़नगर के समीप काली मटकी वाली जमीन खरीदी। काली मिट्टी होने से उन्होंने खरीदी गई जमीन पर पर्माकल्चर फार्मिंग करने के लिए सर्वप्रथम करंज का पेड़ लगाया। करंज का पेड़ हवा से नाइट्रोजन खींचकर जमीन में ट्रांसफर करता है। करंज के पत्तों से बने काढ़े से पत्तों में कीड़े लगने पर छिड़काव किया जाता है। करंज की टहनियों को काटकर फलदार पौधों के पास बिछा देते हैं। इसकी पत्तियां जमीन में खाद का काम करती है। ऐसे जैव विविधता के आधार पर खेती के स्थाई सिस्टम का मॉडल बनाकर वे दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं।
फल, सब्जियां, अनाज सभी प्रकार की खेती करते हैं
उच्च शिक्षित दम्पत्ति अर्पित और साक्षी दोनों ने नौकरी छोड़कर खेतीबाड़ी का धंधा अपनाया है। उसमें वे परमाकल्चर फार्मिंग कर रहे हैं। वे अपनी खेती में फल, सब्जियां, दालें एवं अनाज उगा रहे हैं। इन दम्पत्ति ने 75 प्रकार के पौधे अपने खेत में लगाये हैं। इनमें आधे फलदार हैं, जिसमें केला पपीता, अमरूद, सीताफल, अनार, संतरा, करोंदा, गूंदा, शहतूत आदि हैं। वे परमाकल्चर काँसेप्ट में बायोडायवर्सिटी सिस्टम के मुताबिक खेती कर रहे हैं। फलदार पौधे के साथ कुछ जंगली पौधे सपोर्ट ट्री के रूप में लगाये हैं, जो कि जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। जमीन को वे एक ऐसे तरीके से विकसित कर रहे हैं कि उसकी निरन्तर जमीन उपजाऊ बनी रहे और बंजर न बने।
आईटी सेक्टर में अच्छी नौकरी छोड़कर खेती का रास्ता चुना
युवा दम्पत्ति अर्पित और पत्नी साक्षी दोनों आईटी सेक्टर में एक अच्छी नौकरी छोड़कर इन्होंने खेती का रास्ता चुना है। अर्पित राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने आईआईटी मुम्बई से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है। मुम्बई में साक्षी से मुलाकात हुई। ओलम्पियाड में दोनों को गोल्ड मेडल मिला था। साक्षी ने आईआईटी दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है और उन्होंने वर्ष 2013 में शादी की।
विदेश यात्रा से दोनों के मन में खेती के प्रति रुचि पैदा हुई
Permaculture Farming | दोनों पति-पत्नी बैंगलुर में जॉब करने के बाद विदेश चले गये थे। वहां खुबसूरत जंगलों, पहाड़ों पर देखा कि विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर प्रकृति को अंधाधुंध समाप्त किया जा रहा है। लाखों पेड़ों की कटाई कर सीमेंट-कांक्रीट के जंगल में विकास के काम किये जा रहे हैं। उनके मन में ऐसा लगा कि ऐसा अगर चलता रहेगा तो आने वाले समय में प्रकृति खतरे में पड़ जायेगी। उनके मन में वहां से जो बदलाव किया और उसी समय उन्होंने तय किया कि अब बाकी जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बैठाने के बेहतर तरीके की तलाश में बिताना है। उन्होंने एक अच्छी नौकरी छोड़कर प्रकृति से जुड़ने के लिये स्थाई खेती करने का चुनाव किया। उन्होंने उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे में दोस्त की मदद से एक-डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर प्रकृति से जुड़ने के लिये खेती करना प्रारम्भ विगत पांच सालों से किया जा रहा है।
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