खेती-किसानी

सोयाबीन में लगने वाले किट व रोग की रोकथाम कैसे करें, जानिए

सोयाबीन (Soyabin Crop) में लगने वाले रोगों से फसल को बचाने के लिए कौन-कौन से कीटनाशक का इस्तेमाल करें, जानिए पूरी जानकारी

Soyabin Crop : सोयाबीन विश्व की एक प्रमुख खाद्य फसल है। खरीफ सीजन में बोने वाली यह फसल विश्व की लगभग 25 वानस्पतिक तेल की मांग को पूरा करता है। देश में मध्यप्रदेश सोयाबीन अग्रणी उत्पादन है,लेकिन हाल ही के कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली है, जिसका प्रमुख कारण, मौसम की विपरीत परिस्थितियां है, जैसे फसल के समय अधिक वर्षा होना या फिर बहुत कम वर्षा होना। जिसके कारण कीट एवं रोग को यह परिस्थितियां बहुत हद तक बढ़ाती है।

बारिश में बोई जाने वाली इस फसल को किट व रोग लगने की संभावना अक्सर बनी रहती है, फसल को किट व रोग से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करना होगा। आइए जानते है की सोयाबीन में लगने वाले रोग व उनकी रोकथाम के लिए क्या किया जाना चाहिए।

कीट व उनकी (Soyabin Crop) रोकथाम

तना छेदक (डेक्टीस टेक्संस)

  1. क्षति का प्रकार- इसका लार्वा तने के बीच में सुरंग बनाकर तने को खा जाता है।
  2. रोकथाम- ट्राइजोफास 40 ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से या फिर प्रोपेनाफास 40% ई.सी + साइपरमैथरिन 4% ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पत्ता मोड़क (लेप्रोसिमा इंडिकेटा)

  • क्षति का प्रकार- लार्वा पत्तियों को खाता है।
  • रोकथाम- प्रोपेनाफास 40% ई.सी. + साइपरमैथरिन 4% ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

तना मक्खी (मिलेनोग्रोमाइजा सोजे)

  • क्षति का प्रकार- यह कीट पत्तियो पर अण्डे देता है, फिर मैगट के बाहर आने के बाद पत्तियों से रैंगता हुआ तने को भेदता है। सक्रंमित तने में लाल धारिया मैगट और प्यूपा के साथ दिखाई देती है। यह तने से जड़ क्षेत्र तक जाकर पौधा मार देता है।
  • रोकथाम- नत्रजन उर्वरकों का प्रयोग कम करें।
  • बीज दर अनुमोदित से ज्यादा न रखे, लैम्बडासायहैलोथरीन 4-9 सी .एस. का 300 एम. एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

तम्बाखू की इल्ली (स्पोडोपटेरा ल्यूटेरा)

  • क्षति का प्रकार-‌ इसकी इल्लिया पत्तियों के क्लोरोफिल (हरे भाग) को खा जाती है फलस्वरूप पत्तिया सफेद-पीली पड़ जाती है जिससे पत्तियां जालीनुमा बन जाती है।
  • कीट प्रबंधन- पौधों के संक्रमित भागों को अथवा संपूर्ण क्षतिग्रस्त पौधे को नष्ट कर दें, फैरोमोन ट्रैप को 10 ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाये, प्रोपेनोफास 50% ई.सी. का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करके इस रोग से निजात पा सकते हैं।

सफेद मक्खी (बेमीषिया टेबाकी)

  • क्षति का प्रकार- यह बहुभोजी कीट पत्तियों का रस चूसते है जिससे पत्तिया मुड़ जाती है और पीली पड़ जाती है। यह कीट ही पीला मोजेक रोग फैलाता है।
  • रोकथाम- संक्रमण की शुरूआती अवस्था में पीले पड़े पत्तों को तोड़ दें और गाय के गोबर उपलो से बनी राख से डस्टिंग करें, थायोमिथाक्सम 25 डब्ल्यू जी. का संक्रमण के स्तर अनुसार 80 से 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करे, बीटासायफ्लुथ्रीन 49 + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% ओ.डी. का 350 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर इस कीट को पौधे में लगने से बचाया जा सकता है, पूर्वमिश्रित थायो मिथाक्जाम + लैम्बडासायहैलोथरीन का 125 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें यह सफेद मक्खी के साथ-साथ पत्ती खाने वाले कीटों का भी नियंत्रण करता है।

सेमील्यूपर (क्राइसोडेक्सिस इन्क्लूडेंस)

  • क्षति का प्रकार- यह शुरूआती अवस्था और फूल अवस्था में पौधे को नुकसान पहुँचाती है।
  • कीट प्रबंधन- रोमोन ट्रैप को 10 ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाये, सीलस थ्युरिजिंएसिंस का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे, इंडोकसाकार्ब 8 ई.सी. का 333 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, क्लोरनएन्ट्रानिलिपरोल 5 एस. सी. का 100 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

चने की इल्ली (हैलीकोबर्पा आर्मीगेरा)

  • क्षति का प्रकार- इस किट का लार्वा पत्तियों को खाता है और यह सामान्यतः अगस्त माह में आता है इसके कारण पौधे की पत्तियां झड जाती है और फूल एवं फली दोनो को नुकसान पहुँचता है।
  • रोकथाम- 50 मीटर के अंतर पर 5 ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से स्थापित करे, क्यूनोलफास 25 ईसी का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करे,‌‌ लैम्बडासायहैलोथरीन 9 सी.एस. का 300 एम.एल.प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

चक्रभ्रंग/गर्डल बीटल (ओवेरिया व्रेबिस)

  • क्षति का प्रकार- इल्ली और लार्वा दोनो अवस्थाओं में पौधे को नुकसान पहुँचाते है। इसकी वयस्क मादा इल्ली तने पर रिंग बनाती है, रिंग में छेद बनाकर अण्डे देती है अण्डे से निकलने वाली इल्ली तने को अंदर ही अंदर से खाती रहती है जिससे तना सूख जाता है।
  • कीट प्रबंधन- संक्रमण स्तर कम होने की दषा में पौधे को उखाड़कर मिट्टी में दबा दें, लाइट ट्रैप का इस्तेमाल करें या फिर आप प्रोपेनाफास 40% ई.सी. का 25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, एच.ए.एन.पी.बी. 250 एल. ई. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

प्रमुख रोग व उनकी रोकथाम

Soyabin Crop- एनथ्रेकनोज/ फली झुलसन

  • सोयाबीन कीट- एनथ्रेकनोज/ फली झुलसन
  • रोग लक्षण-‌ यह एक बीज एवं मृदाजनित रोग है। रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों तने और फली पर गहरे भूरे रंग के अनियमित धब्बे बन जाते है और बाद में यह धब्बे काली संरचनाओं से भर जाते है।पत्तियों एवं षिराओं का पीला-भूरा होना, मुड़ना और झड़ना इस बीमारी के लक्षण है।
  • रोकथाम- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें। बीज को र्कावेंडाजिम + मेंकोजेब 3 ग्राम प्रति किलो बीच की दर से उपचारित करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 ग्राम प्रति लीटर मेंकोजेब अथवा 1 ग्राम प्रति लीटर र्कावेंडाजिम का छिड़काव करें।
  • टेबुकोनाझोल का 625 एम. एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

पीला मोजेक

  • सोयाबीन कीट- पीला मोजेक
  • लक्षण- पत्तियों पर असामान्य पीले धब्बे पड़ जाते है।सक्रंमित पौधे की बढ़वार रूक जाती है और फली भराव कम होता है व दाना छोटा होता है।
  • रोग प्रबंधन- सक्रंमण कम होने की दषा में पौधे को उखाड़कर फेंक दें, थायामिथोक्सम 25 डब्ल्यू. जी. का संक्रमण के स्तर के अनुसार 80 से 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करें, पूर्वमिश्रित बीटासायफ़्लुथ्रीन 49 + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% ओ.डी. का 350 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, पूर्वमिश्रित थायो मिथाक्जाम लैम्बडासायहैलोथरीन का 125 एम.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें यह सफेद मक्खी के साथ साथ पत्ती खाने वाले कीटों का भी नियंत्रण करता है।

चारकोल रोट

  • सोयाबीन कीट- चारकोल रोट
  • लक्षण- यह रोग पानी की कमी, निमेटोड अटैक, मिट्टी के कड़क होने की दशा में होता है। इसमें नीचे की पत्तिया पीली पड़ जाती है और पौधा मुरझा जाता है।
  • रोग प्रबंधन- रोग सहनषील किस्मे जैसे जे.एस.-2034, जे.एस.-2029, जे.एस.-9752 का उपयोग करें, ट्राइकोडर्मा विरडी से 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचारित करें, खड़ी फसल में कार्बेनडाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

बैक्टीरियल ब्लाईट

  • सोयाबीन कीट- बैक्टीरियल ब्लाईट
  • लक्षण- असामान्य पीले बिंदु पत्तियों पर पड़ जाते हैं और फिर मृत दिखाई पड़ते है और फिर बड़े काले धब्बे तना और पत्तियों पर दिखाई देते है।
  • रोग प्रबंधन- कापर फफूँदनाषक का 2 ग्राम प्रतिलीटर या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 0.25 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

सोयाबीन में लगने वाले प्रमुख रोग

पीला मोजेक रोग-

Soyabin Crop- यह रोग मूंग के पीला मोजेक वायरस द्वारा उत्पन्न होता है तथा बै मौसिया टेबेकाई नाम सफेद मक्खी द्वारा स्वस्थ पौधे तक फैलता है।

  • संक्रमण- सफेद मक्खी साल भर सक्रिया रहती है तथा जब ये एक बार वायरस को ग्रहण कर लेती है तो उम्र-भर रोग फैलाती है। यह वायरस सफेद मक्खी द्वारा अन्य दलहनी फसलो व खरपतवारो पर भी रोग फैलाता है। इस कारण ये रोग सोयाबीन का विनाशकारी रोग माना जाता हैं।
  • लक्षण- इस रोग मे सर्वप्रथम पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बो के रूप में प्रकट होता है। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते है जिससे पुरी पत्ती ही पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती है तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। अतः पौधो पर पुष्पन कम होता हैं एवं फलियां लगती भी है तो उनमें दानो का विकास नही हो पाता हैं।
  • रोकथाम- रोग अवरोधी किस्म PK 416/ 472/ 1024/ 1042, हरा सोया, पूसा-37 की बिजाई करें।

सफेद मक्खी इस रोग को फैलाती हैं।

  • अतः इसकी रोकथाम के लिए खेत में बिजाई के 20-25 दिनों के बाद 10-15 दिनो के अन्तर 250 मि0लि0 डाईमैथोएट 30 ई.सी. या रोगोर या 250 मि0लि0 आक्सीडैमेटान मिथाईल 25 ई.सी (मैटासिस्टाॅक्स) या 250 मि0लि0 फार्मेथियान 25 ई.सी. (एथियो) या 400 मि.लि. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  • रोगी पौधो को जड़ से उखाड कर नष्ट कर दें। खरपतवारो को फसल में से समय पर निकाल दे।
  • इसके अतिरिक्त भूमि या फसलो पर विसक्रमंण के लिए समय-समय पर नीम के सुखे पत्तों के पावडर, नीम के बीजों के पावडर या निबौली के पावडर का पांच प्रतिशत (100 लि0 पानी में 5 किलो ग्राम से छिड़काव करते रहना चाहिए।

सामान्य मोजेक (मोजेक रोग)

इस रोग का सोयाबीन उगाने वाले सभी क्षेत्रों में साधारण प्रकोप होता है। यह बीजोढ़ रोग है क्योंकि इस रोग का वायरस बीजो के अन्दर होता है।

  • सक्रमंण- पौधों में बीजो से प्राथमिक सक्रमंण होने के बाद इस रोग का फैलाव ऐफिड कीट द्वारा ही होता है। रोगग्रस्ति बीज बोने पर पौधा इस रोग से संक्रमित हो जाता है तथा ऐफिड कीट इस वायरस का वाहक बनकर स्वरूप बनकर पौधो को भी संक्र्मित करता है।
  • लक्षण- इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों व फलियों मे ही देखने को मिलते हैं। पत्तिया सकुंचित होकर नीचे की और मुड़ जाती है जिससे कलियों में बीज कम लगते है।
  • रोकथाम- इस रोग के नियन्त्रण के लिए ग्रसित पौधो को तुरन्त उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके रोकथाम के लिए प्रति हैक्टर 100-125 मि.ली., इमिडाक्लोपरीड, ऐसीफेट, थायामेथोक्साम आदि मे से किसी एक का छिडकाव करें।
  • भूमि में या फसल पर विसंक्रमण के लिए समय समय पर नीम के सूखे पतों पा पाउडर नीम के बीजो के पाउडर या निबौली के पाउडर का 5 प्रतिशत (100 लीटर पानी मे 5 किलो गा्रम) से छिड़काव करते रहना चाहिए।

सोयाबीन का अंगमारी रोग

यह एक बीजोड़ रोग है जो स्यूडोमोनास ग्लाइसीनिया नामक जिवाणु से फैलाता हैं।

  • संक्रमण- यह जिवाणु मुख्यतः बीजों मे पाया जाता है लोकिन रोगग्रस्त फसलों के अवशेष, जो खेती मे रह जाते है, मे भी जिवित रह सकता है। परोषियों मे यह बीजो के दवारा संक्रमण करता है एवं हवा या पानी के दवारा फसल अवशेषों से पुर्णरन्ध्र से भी प्रवेश कर सकता हैं।
  • लक्षण- परपोषियों मे प्रवेश के कुछ दिनों पश्चात ही पौधो की संक्रमित मे छोटे-छोटे नल रिसते हुए पीलापन लिए भुरे रंग के कोणीय धब्बे प्रकट हो जाते है। ये धब्बे आपस मे मिलकर संक्रमित भाग को ऊतकक्ष्य परिवर्तित कर देते है
  • अत्यधिक सक्रमंण होनी की सिथति मे पत्तियां सूख कर लटक जाती है एंव पौधे की जैविक क्रियाएं प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है। सामन्यता यह रोग पत्तियो मे ही विशेष रूप से पाय जाता है लेकिन कभी-कभी तनों मे भी यह फैल जाता है।
  • रोकथाम- फसल के अवशेषो व खरपतवारो को नष्ट कर देना चाहिए। बीजो का गर्म पानी मे लगभग 10 मिनट तक उपचार करने से बाधा तथा आंतरिक संक्रमण की संभावना हो जाती है। बीजो मे जिवाणु लगभग एक वर्ष तक जीवित रह सकते है।

गेरूआ रोग

रोकथाम- बे-मौसम सोयाबीन उगाना बन्द करना चाहिए। अपने आप उगने वाले सोयाबीन के पौधों को नष्ट करें। रस्ट प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें। गहरी जुताई करें। एक ही तरह के फसल उगाने मे बदलाव करें। सोयाबीन के बदले ज्वार मक्का, अरहर ले सकते है। इसके अलावा इन्ही फसलों को सोयाबीन के साथ अन्तर्वर्ती के रूप मे ले। बुआई के समय उच्च कोटी के बीज का प्रयोग करना चाहिए। रोग से ग्रमित पौधो को शुरूवाती अवस्था में ही उखाडकर नष्ट करना चाहिए।

रस्ट को रोकने के लिए मेनकोझेब 75 प्रतिशत को 1.5 से 2 किलो ग्राम 1 हैक्टर अथवा प्रोपेवोना जाल (टिल्ट) 1 मि ली या टाईडिमेफान एक ग्राम दवा प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें। रोग की अधिकता पर दूसरा छिड़काव 15 दिनों के बाद पुनः करें।

सोयाबीन का स्फोट रोग

Soyabin Cropयह एक बीजोढ़ रोग है जो जैन्थोमोनास वैरा सोजेन्स नामक जीवाणु से फैलता है।

  • सक्रमंण- पौधो मे प्राथमिक यही से होता है तथा इसके बाद हवा पानी या पर्णरन्ध्रो द्वारा स्वस्थ पौधे मे सक्रमंण फैलता है। वर्षा के समय यह रोग उग्र रूप् धारण कर लेता है।
  • लक्षण- पौधे के उगते ही इस रोग के लक्षण मुख्यतः पतियो की उपरी सतह पर छोटे-छोटे हरिमापन लिए पीलेरंग के धब्बे दिखाई देते है। इन धब्बो का मध्य भाग लाल-भूरा रंग लिऐ उभरा हुआ होता है। इस कारण इन्हें स्फोट कहा जाता है।इन स्फोटों से अंगभारी रोग की तरह रिसाव नही होता है एवं ये सामान्यत पत्तियों की निचली सतह पर पाऐ जाते है। धीरे-धीरे ये स्फोट आपस में मिलकर बडे़ धब्बों का रूप धारण कर लेते हे जिससे पत्तियां मुरझाकर गिर जाती है। यह रोग मुख्यतः पत्तियों पर ही पाया जाता है। लेकिन कभी-कभी यह रोग फलियों पर भी पहुंच जाता हे। जिससे फलियां लाल-भूरे रंग से ग्रसित हो जाती है तथा फलियों के दानों का वाणिज्य मूल्य कम हो जाता है।
  • रोकथाम- खेतो में उपस्थित फसल के अवशेष एवं खरतपतवार नष्ट कर देना चाहिए। बीजों को गर्म पानी से लगभग 10 मिन्ट तक 52 डिग्री सैल्सियस में उपचार करने से बाहरी तथा आंतरिक संक्रमण की संभावाना क्षीण हो जाती है। बीजों में सामान्यतः जीवाणु लगभग 30 महिनों तक जीवित रह सकते है प्रति किलो बीज उग्रा थायरम 75ॅच् या 0.1 प्रतिशत स्टेप्टोसाइक्लिन से उपचार करना चाहिए।
  • खड़ी फसल पर इस रोग के रोकथाम के लिए प्रति ली0 पानी में 1-15 ग्राम कार्बोक्सीन 75ॅच् का छिड़काव करें। भूमि मे या फसलों पर विसंक्रमण के लिए समय समय पर नीम के सूखे पतों का पाउडर नीम के बीजो के पाउडर या निबौली के पाउडर का 5 प्रतिशत (100 लीटर पानी मे 5 किलो ग्राम) से छिड़काव करते रहना चाहिए।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि कीटनाशक के इस्तेमाल की शुरुआत तभी करनी है जब तक कि कीट व रोग आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले। साथ ही कीट व रोग की रोकथाम पर ध्यान देना है, जिसकी शरूआत बुवाई से पहले हो जाती है जैसे ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करना, रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करना, अनुमोदित बीज दर से ज्यादा नही रखना और नत्रजन उर्वरकों का उपयोग नहीं करना और पोटाश की कमी रहने पर पोटाश खादों का उपयोग मिट्टी में सुनिश्चित करना आदि, तभी जाकर हम कीट और रोगों से निजात पा सकते हैं।

सोयाबीन में कैल्शियम तथा विटामिन ए भी भरपुर मात्रा मे पाया जाता है। इसका प्रयोग औषधि, खाद्य पदार्थ व वनस्पति घी बनाने में किया जाता है। सोयाबीन की मुख्यतः खेती अमेरिका, चीन, इंडोनेशिया, जापान, ब्राजील, थाईलैंड, कनाडा में की जाती हैं, पर अब भारत में भी सोयाबीन एक ऐसी फसल के रूप में विकसित हुई है जिससे किसान व्यापारी एवं उद्यमी वर्ग के लोग भरपूर मुनाफा ले रहे है। भारत में इसके मुख्य उत्पादक राज्य उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान है।

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राधेश्याम मालवीय

मैं राधेश्याम मालवीय Choupal Samachar हिंदी ब्लॉग का Founder हूँ, मैं पत्रकार के साथ एक सफल किसान हूँ, मैं Agriculture से जुड़े विषय में ज्ञान और रुचि रखता हूँ। अगर आपको खेती किसानी से जुड़ी जानकारी चाहिए, तो आप यहां बेझिझक पुछ सकते है। हमारा यह मकसद है के इस कृषि ब्लॉग पर आपको अच्छी से अच्छी और नई से नई जानकारी आपको मिले।
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