बंपर पैदावार के लिए सोयाबीन की खेती के लिए आवश्यक बातें जानिए
खरीफ सीजन के प्रमुख फसल सोयाबीन की अच्छी खेती के लिए जरूरी/आवश्यक बातों (Soybean ki kheti ke liye jaruri baten) को जानिए
Soybean ki kheti ke liye jaruri baten | मानसून का समय निकट आने के पश्चात किसान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल सोयाबीन की बुवाई करने के लिए खेतों की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हकाई जुताई से लेकर खाद बीज की व्यवस्था की जा रही है। खरीफ फसल की बुवाई के पहले कृषि विभाग के अधिकारी एवं कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को बीज का परीक्षण करने की सलाह दी है।
सोयाबीन की खेती के लिए जरूरी बातें (Soybean ki kheti ke liye jaruri baten)
किसान इन बातों का ध्यान रखें :-
- बुवाई से पहले किसान सोयाबीन के 100 दोनों का अंकुरण करें, यदि 75 से अधिक दानें अंकुरित होते हैं तो ही बीज को बुवाई योग्य माना जाए। इससे सोयाबीन की अच्छी उपज होगी और किसानों को लाभ मिलेगा।
- किसानों से कहा है कि खरीफ बुआई के पहले बीज का अंकुरण अवश्यक रूप से कराएं।
- फसल के लिए उर्वरक व्यवस्था समिति या निजी व्यापारी से अपनी आवश्यकता अनुसार क्रय कर भंडारित करें, जिससे बुवाई के समय पर कृषकों को किसी भी प्रकार समस्या का सामना ना करना पड़े।
- किसान प्रायोगिक तौर पर प्राकृतिक खेती के घटक को सोयाबीन फसल पर प्रयोग कर बेहतर परिणाम लें सकते हैं एवं आगामी फसलों के अधिक रकबे पर प्राकृतिक खेती करें।
- किसान बीज उर्वरक एवं कीटनाशक खरीदते समय संस्थाओं से पक्के बिल लें।
- फसल विविधीकरण अपनाकर एक से अधिक फसल लें ताकि अल्प, अधिक वर्षा होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके ।
- बीज का चयन करते हुए नवीन किस्म (10 वर्ष के अन्दर) का चयन करें।
- सोयाबीन की बोवनी लगभग 15 जून से 10 जुलाई के प्रथम सप्ताह का उपयुक्त समय है।
सोयाबीन की उन्नत प्रजातियां
- सोयाबीन किस्म जे.एस. 9560 (JS 9560)
- सोयाबीन किस्म जे.एस. 2034 (JS 2034)
- सोयाबीन किस्म जे.एस. 2029 (JS 2029)
- सोयाबीन किस्म जे.एस. 9305 (JS 9305)
- सोयाबीन किस्म जे.एस. 335 (JS 335) …
- सोयाबीन किस्म एन.आर.सी. 86 (NRC 86)
- सोयाबीन किस्म जवाहर जे.एस. …
- सोयाबीन किस्म जे.एस.
- छोटे दाने वाली किस्में – 28 किलोग्राम प्रति एकड़
- मध्यम दाने वाली किस्में – 32 किलोग्राम प्रति एकड़
- बड़े दाने वाली किस्में – 40 किलोग्राम प्रति एकड़
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खरपतवार नियंत्रण जरूरी है
- सोयाबीन फसल की शुरुआत में लगभग 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारों को नश्ट करने के लिये क्यूजेलेफोप इथाइल 400 मिली प्रति एकड़ अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये इमेजेथाफायर 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव की अनुशसा है।
- नींदानाशक के प्रयोग में बोने के पूर्व फ्लुक्लोरेलीन 800 मिली प्रति एकड़ आखरी बखरनी के पूर्व खेतों में छिड़कें और दवा को भलीभाँति बखर चलाकर मिला देवें। बोने के पश्चात एवं अंकुरण के पूर्व एलाक्लोर 1.6 लीटर तरल या पेंडीमेथलीन 1.2 लीटर प्रति एकड़ या मेटोलाक्लोर 800 मिली प्रति एकड़ की दर से 250 लीटर पानी में घोलकर फ्लैटफेन या फ्लैटजेट नोजल की सहायता से पूरे खेत में छिड़काव करें। तरल खरपतवार नाशियों के स्थान पर 8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से ऐलाक्लोर दानेदार का समान भुरकाव किया जा सकता है। बोने के पूर्व एवं अंकुरण पूर्व वाले खरपतवार नाशियों के लिये मिट्टी में पर्याप्त नमी व भुरभुरापन होना चाहिये।
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रोग नियंत्रण (Soybean ki kheti ke liye jaruri baten)
- फसल बोने के बाद से ही फसल निगरानी करें। यदि सम्भव हो तो लाइट ट्रेप तथा फेरोमेन टूब का उपयोग करें। बीजोपचार आवश्यक है। उसके बाद रोग नियंत्रण के लिये फंफूद के आक्रमण से बीज सड़न रोकने हेतु कार्बेंडाजिम 1 ग्राम / 2 ग्राम थीरम के मिश्रण से प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित करना चाहिये। थीरम के स्थान पर केप्टान एवं कार्बेंडाजिम के स्थान पर थायोफेनेट मिथाइल का प्रयोग किया जा सकता है।
- पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फुंद जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिये कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू.पी. या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यू.पी. 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिये। पहला छिड़काव 30-35 दिन की अवस्था पर तथा दूसरा छिड़काव 40-45 दिन की अवस्था पर करना चाहिये। बैक्टीरियल पश्च्यूल नामक रोग को नियंत्रित करने के लिये स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 पीपीएम 200 मिग्रा दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कॉपर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में मिश्रण करना चाहिये। इसके लिये 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन एवं 20 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का घोल बनाकर उपयोग कर सकते हैं।
- गेरुआ प्रभावित क्षेत्रों (जैसे बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी) में गेरुआ के लिये सहनशील जातियां लगायें तथा रोगों के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही 1 मि.ली. प्रति लीटर की दर से हेक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या ऑक्सीकार्बोजिम 10 ग्राम प्रति लीटर की दर से ट्रायएडिमीफान 25 डब्ल्यूपी दवा के घोल का छिड़काव करें।
- विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग व वड व्लाइट रोग प्राय: एफ्रिडस सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि द्वारा फेलते हैं। अत: केवल रोग रहित स्वस्थ बीज का उपयोग करना चाहिये एवं रोग फेलाने वाले कीड़ों के लिये थायोमेथेक्जोन 70 डब्ल्यू एस. से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों का खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी., 400 मि.ली. प्रति एकड़, मिथाइल डेमेटान 25 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, डायमिथोएट 30 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, थायोमिथेजेम 25 डब्ल्यू जी 400 ग्राम प्रति एकड़।
- पीला मोजेक प्रभावित क्षेत्रों में रोग के लिये ग्राही फसलों (मूंग, उड़द, बरबटी) की केवल प्रतिरोधी जातियां ही गर्मी के मौसम में लगायें तथा गर्मी की फसलों में सफेद मक्खी का नियमित नियंत्रण करें। नीम की निम्बोली का अर्क डिफोलियेटर्स के नियंत्रण के लिये कारगर साबित हुआ है।
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