गेहूं निर्यात प्रतिबंध का किसानों पर कितना असर पड़ा? पढ़िए पूरा विशेषण
भारत में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं निर्यात किए जाने को लेकर प्रतिबंध (Wheat export ban affect farmers?) लगाया हुआ है इस प्रतिबंध का असर किसानों पर कितना बड़ा यह जानिए
Wheat export ban affect farmers? फरवरी माह में रूस एवं यूक्रेन के मध्य जंग की शुरुआत हो गई थी। उसी दौरान भारत में रबी फसलों की कटाई शुरू हुई थी। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस एवं यूक्रेन से गेहूं खरीदने वाले देशों में गेहूं की किल्लत होने लगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्न संकट को देखते हुए भारत सरकार ने विभिन्न देशों को गेहूं का निर्यात किया गेहूं निर्यात के दौरान निर्यातकों को निर्यातकों को कई प्रकार की सहुलतें प्रदान की की गई थी। इसी दरमियान जब भारत से अच्छी मात्रा में गेहूं का निर्यात होने लगा। उसी समय केंद्र सरकार ने निर्णय लेते हुए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसका असर सभी पर पड़ा। किसानों पर गेहूं निर्यात प्रतिबंध का कितना असर पड़ा यह जानिए।
गेहूं निर्यात पर कब लगा प्रतिबंध?
केंद्र सरकार ने भारतीय बाजारों में गेहूं की बढ़ती कीमतों पर काबू करने के लिए गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध (Wheat export ban affect farmers?) लगाया। सरकार ने यह निर्णय 13 मई को लिया तब तक लगभग 70 लाख टन गेहूं निर्यात हो चुका था, वही मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी चल रही थी। निर्यात पर प्रतिबंध लगते ही बंदरगाहों पर तत्काल प्रतिबंध का असर दिखा। ऊंचे दाम पर गेहूं की खरीदी कर रहे, निर्यातकों ने गेहूं की खरीदी करना बंद कर दिया।
गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की असली वजह क्या थी?
भारत में गेहूं का पर्याप्त भंडार होने के बावजूद केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया। इसके पीछे सरकार की एक प्रमुख वजह यह सामने आई कि केंद्र सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे गेहूं निर्यात पर नियंत्रण चाह रही थी, सरकार स्वयं गेहूं का निर्यात करना चाह रही थी, यानी सरकार का मकसद था, कि यह का निर्यात सरकारी स्तर पर हो। सरकार अपने इस मकसद में कामयाबी रही। अब सरकार अपने स्तर पर ही गेहूं का निर्यात कर रही है।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध का सबसे ज्यादा असर किस पर पड़ा?
सरकार ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के कुछ नियमों में ढिलाई की मांग भी कही थी, जब डब्ल्यूटीओ (WTO) ने सरकार भारत सरकार की इस मांग पर विचार नहीं किया तो केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार के इस कदम का सबसे ज्यादा असर निर्यातकों एवं व्यापारियों पर पड़ा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुले बाजार में निर्यात की आस को लेकर निर्यातकों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौदे कर लिए थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापारियों द्वारा किए गए करार के बाद व्यापारियों ने भारतीय गेहूं ऊंचे दाम पर खरीदा, लेकिन इसी दर मियान केंद्र सरकार द्वारा गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने से अंतरराष्ट्रीय करार रद्द हो गए।
गेहूं निर्यात प्रतिबंध का किसानों पर कितना असर पड़ा?
इस पूरे घटनाक्रम के बीच भारतीय किसानों पर गेहूं निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध का ज्यादा असर नहीं पड़ा। हालांकि मंडियों में मंडियों में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगते ही गेहूं के दाम में गिरावट हुई। निर्यात पर प्रतिबंध के पश्चात मंडियों में गेहूं के भाव में 200 से 300 रुपए तक की गिरावट हुई। हालांकि इसके पश्चात भी गेहूं के भाव समर्थन मूल्य से अधिक ही रहे। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के दौरान समर्थन मूल्य पर खरीदी हो रही थी एवं जब यहां पर गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया उसके पहले ही 70% किसान अपनी उपज मंडियों में बेंच चुके थे।
गेहूं के भाव आगे क्या रहने वाले हैं?
केंद्र सरकार यह बात साफ कर चुकी है, कि गेहूं के निर्यात पर से फिलहाल प्रतिबंध (Wheat export ban affect farmers?) नहीं हटाया जाएगा। ऐसे में सभी के मन में एक सवाल उमड़ रहा है कि गेहूं के भाव आगे कैसे रहने वाले हैं। इसको लेकर कृषि विशेषज्ञ एवं व्यापारी बताते हैं कि फिलहाल गेहूं के भाव में तेजी नहीं रहेगी। हालांकि स्थानी स्थानीय स्तर पर होने वाली खरीदी एवं मांग के अनुसार लोकवन व शरबती जैसी वैरायटीयों के भाव बढ़ सकते हैं। गेहूं की अन्य किस्मों के दाम आने वाले 2-3 माह तक सामान्य बने रहने की संभावना अधिक है।
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